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इस रेलवे स्टेशन पर 42 सालों से नहीं रुकी कोई ट्रेन – वजह जानकर चौंक जाएंगे

इस रेलवे स्टेशन पर 42 सालों से नहीं रुकी कोई ट्रेन – वजह जानकर चौंक जाएंगे

भारत में हजारों रेलवे स्टेशन हैं – कुछ व्यस्त, कुछ शांत, और कुछ बिल्कुल भुला दिए गए। लेकिन आज हम बात कर रहे हैं एक ऐसे स्टेशन की, जो ना केवल भुला दिया गया, बल्कि पिछले 42 सालों से एक भी ट्रेन वहां नहीं रुकी। यह कहानी है बेगुनकोडर रेलवे स्टेशन की — एक ऐसा स्टेशन जो रहस्यों, अफवाहों और अंधविश्वासों में लिपटा हुआ है।

कहां स्थित है यह स्टेशन?

बेगुनकोडर रेलवे स्टेशन पश्चिम बंगाल के पुरुलिया ज़िले में स्थित है। यह रांची और पुरुलिया के बीच पड़ता है और 1960 के दशक में इसे चालू किया गया था। यह स्टेशन एक समय पर बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता था और आस-पास के गांवों के लोग इसी स्टेशन से आवाजाही करते थे।

शुरुआत: एक सामान्य स्टेशन

1960 में जब इस स्टेशन का उद्घाटन हुआ, तो लोगों में खुशी की लहर थी। यह स्टेशन उस समय की एक प्रमुख महिला राजनेता कमला देवी चट्टोपाध्याय के प्रयासों से बना था। ट्रेनों का रुकना शुरू हुआ, और कुछ सालों तक स्टेशन ने सामान्य रूप से काम किया।

लेकिन फिर एक दिन ऐसी घटना हुई, जिसने पूरे इलाके को डर और रहस्य में ढंक दिया।

अचानक सब बदल गया — स्टेशन पर भूत की अफवाह

1970 के दशक के उत्तरार्ध में अफवाह फैली कि एक लड़की की मौत ट्रेन से कटकर हो गई, और उसकी आत्मा स्टेशन पर भटकती है। लोगों ने कहना शुरू किया कि रात को सफेद साड़ी में एक औरत दिखाई देती है, जो अचानक गायब हो जाती है।

स्टेशन मास्टर और उनके परिवार के कुछ सदस्यों ने भी कथित तौर पर अलौकिक घटनाओं का अनुभव किया — आवाजें, अजीब रोशनी, सामान का हिलना आदि।

कुछ दिनों बाद स्टेशन मास्टर का परिवार स्टेशन छोड़कर भाग गया, और फिर किसी ने वहां नौकरी नहीं की। धीरे-धीरे यात्रियों ने भी उस स्टेशन पर चढ़ना-उतरना बंद कर दिया।

1980 में बंद हुआ स्टेशन

1978 के बाद से इस स्टेशन पर कोई ट्रेन नहीं रुकी। आधिकारिक रूप से स्टेशन को 1980 में ‘नॉन-ऑपरेशनल’ घोषित कर दिया गया। रेलवे की कोई टीम वहां तैनात नहीं थी। ट्रेनों ने वहां बिना रुके गुजरना शुरू कर दिया।

क्या यह सब सच था?

अब सवाल उठता है – क्या वाकई में स्टेशन पर भूत था?

कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि वहां कोई अलौकिक घटना हुई थी। हो सकता है कुछ मानसिक भ्रम, या स्थानीय अंधविश्वासों ने इन कहानियों को जन्म दिया हो। लेकिन डर और अफवाहों ने इस कदर पकड़ बनाई कि रेलवे ने भी वहां स्टाफ भेजना बंद कर दिया।

फिर से खुला स्टेशन – लेकिन रुकी नहीं ट्रेन

2009 में, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस स्टेशन को फिर से खोलने का ऐलान किया। स्टेशन की मरम्मत की गई, साइनबोर्ड लगाए गए, और लाइट्स भी लगाई गईं। लोगों को उम्मीद थी कि अब ट्रेनें फिर से रुकेंगी।

लेकिन असलियत यह है कि:

यानी स्टेशन नाम का तो है, लेकिन व्यवहार में बंद ही है

मनोविज्ञान और समाजशास्त्र की नज़र से

इस घटना को एक मनोवैज्ञानिक और सामाजिक केस स्टडी की तरह देखा जा सकता है:

फिल्मों और कहानियों में जगह

बेगुनकोडर स्टेशन की रहस्यमयी कहानी ने कई लेखकों, डॉक्युमेंट्री मेकर्स और यूट्यूबर्स को आकर्षित किया। इस स्टेशन को लेकर कई वीडियो बनाए जा चुके हैं, और कुछ बंगाली व हिंदी कहानियों में इसका ज़िक्र भी होता है।

अब कैसा दिखता है स्टेशन?

अगर आज आप बेगुनकोडर स्टेशन जाएं, तो आपको एक साफ-सुथरा लेकिन सुनसान स्टेशन मिलेगा:

क्या भविष्य में ट्रेनें रुकेंगी?

रेलवे ने कई बार कहा है कि अगर लोगों की मांग और यात्री संख्या बढ़ेगी, तो ट्रेनें रुकवाई जाएंगी। लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ। फिर भी उम्मीद की जा रही है कि:

निष्कर्ष

बेगुनकोडर स्टेशन केवल एक रेलवे स्थान नहीं, बल्कि एक मानव मन की शक्ति, अंधविश्वास, और सामूहिक सोच का प्रतीक बन गया है। यह दिखाता है कि एक अफवाह कैसे वास्तविकता को बदल सकती है — और एक स्टेशन, जो हजारों लोगों के लिए सहूलियत था, कैसे 42 सालों तक खामोश हो गया।

तो अगली बार जब आप ट्रेन से सफर करें और बेगुनकोडर स्टेशन को पार करें, तो याद रखें — यह सिर्फ एक प्लेटफॉर्म नहीं, एक रहस्यमयी अध्याय है भारतीय रेलवे के इतिहास का।

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