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जब ट्रेन ड्राइवर बन गया हीरो – रेलवे की 3 सच्ची बहादुरी की कहानियाँ

जब ट्रेन ड्राइवर बन गया हीरो

भारतीय रेलवे हर दिन करोड़ों लोगों को उनके गंतव्य तक पहुँचाता है, लेकिन इस व्यवस्था के पीछे कुछ ऐसे चेहरे भी हैं जो सामान्य ड्यूटी करते हुए असाधारण काम कर जाते हैं।
खासतौर पर ट्रेन ड्राइवर — जिन्हें हम आमतौर पर केवल इंजन में बैठे हुए देखते हैं — कई बार ऐसे निर्णय लेते हैं जो सैकड़ों जिंदगियों को बचा देते हैं, और खुद को भी जोखिम में डालते हैं।

यह लेख तीन ऐसी सच्ची कहानियों पर आधारित है जब ट्रेन ड्राइवर ने साहस, सूझबूझ और इंसानियत की मिसाल पेश की, और संकट के समय नायक बन गए।

कहानी 1: जब ब्रिज टूटा, पर ड्राइवर की नज़र बचा ले गई जानें

स्थान: उत्तराखंड
वर्ष: 2016

उत्तराखंड के कोटद्वार-काशीपुर सेक्शन पर एक मालगाड़ी जा रही थी। तेज बारिश के कारण एक छोटा पुल बह गया था, और उस पर कोई चेतावनी बोर्ड भी नहीं था।
जब ट्रेन पुल के करीब पहुंची, तो ड्राइवर विनोद कुमार यादव को कुछ अजीब लगा — उन्होंने देखा कि पटरियाँ असामान्य रूप से नीचे झुकी हुई हैं।

उन्होंने तुरंत इमरजेंसी ब्रेक लगाया और महज 100 मीटर पहले ट्रेन रोक दी। अगर ट्रेन पुल पर चढ़ती, तो पूरी ट्रेन नदी में गिर जाती और दर्जनों जानें जा सकती थीं।

बाद में जांच में पाया गया कि पुल पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका था। ड्राइवर की सतर्कता और समय पर फैसला लेने की क्षमता ने रेलवे इतिहास में एक और बहादुरी का पन्ना जोड़ दिया।

कहानी 2: जलती ट्रेन को अकेले यार्ड तक ले गया ड्राइवर

स्थान: बिहार
वर्ष: 2018

पटना से दिल्ली जा रही एक एक्सप्रेस ट्रेन में अचानक पावर कोच में आग लग गई। उस समय ट्रेन करीब 80 किमी/घंटा की स्पीड से चल रही थी।
ट्रेन में 800 से अधिक यात्री सवार थे और पैनिक की स्थिति बन गई।

लोको पायलट रमेश ठाकुर ने स्थिति को समझा और तुरंत सभी कोचों का ब्रेक सिस्टम अलग किया, ताकि सिर्फ इंजन और जला हुआ कोच ट्रेन से अलग हो जाए।
फिर वे उस जलते हुए हिस्से को लेकर करीब 4 किमी दूर तक एक खुले यार्ड में ले गए, ताकि बाकी ट्रेन को आग से बचाया जा सके।

उनकी इस सूझबूझ और बहादुरी के कारण एक बड़ा हादसा टल गया। रमेश ठाकुर को भारतीय रेलवे ने “सेवा बहादुरी सम्मान” से नवाज़ा।

कहानी 3: ट्रैक पर बच्चा और सामने से आ रही ट्रेन

स्थान: मध्य प्रदेश
वर्ष: 2022

कटनी-सिंगरौली रेलखंड पर एक मालगाड़ी को ड्राइव कर रहे लोको पायलट महेश वर्मा ने अचानक देखा कि ट्रैक पर एक छोटा बच्चा खेलते-खेलते पटरियों पर आ गया है
ट्रेन की गति लगभग 70 किमी/घंटा थी और दूरी बहुत कम थी।

महेश वर्मा ने तेजी से हॉर्न बजाया और इमरजेंसी ब्रेक लगाया, लेकिन ट्रेन इतनी जल्दी रुक नहीं सकती थी।
उन्होंने ट्रेन से कूदने का निर्णय लिया, दौड़कर ट्रैक पर पहुंचे और ऐन वक्त पर बच्चे को खींच लिया।
इस प्रक्रिया में वे खुद घायल हो गए लेकिन बच्चे की जान बच गई।

इस घटना का वीडियो स्टेशन के CCTV कैमरे में कैद हुआ और सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। लोग उन्हें “रियल हीरो” कहने लगे।

ऐसे मामलों में ट्रेन ड्राइवर क्या-क्या झेलते हैं?

ट्रेन ड्राइवर न सिर्फ ट्रेन को चला रहे होते हैं, बल्कि वे हर सेकेंड सुरक्षा, समय, यात्री की स्थिति और मौसम पर नज़र रखते हैं।
ऐसे संकट के समय वे जो निर्णय लेते हैं, वह तत्काल, जोखिमपूर्ण और तनाव से भरा होता है।

भारतीय रेलवे ड्राइवरों की ट्रेनिंग कैसी होती है?

रेलवे अपने ड्राइवरों को बहुत कठिन ट्रेनिंग देता है। इसमें शामिल होता है:

समाज का नजरिया बदल रहा है

पहले ट्रेन ड्राइवर को सिर्फ “इंजन वाला” कहा जाता था, लेकिन अब लोग समझने लगे हैं कि वह एक चलती हुई ज़िम्मेदारी है।
जब ऐसी कहानियाँ सामने आती हैं, तो समाज इन नायकों को सराहना शुरू करता है।

रेलवे ने भी अब सोशल मीडिया और न्यूज़ के माध्यम से इन कहानियों को सामने लाना शुरू कर दिया है।

निष्कर्ष

ट्रेन ड्राइवर सिर्फ इंजन नहीं चलाते, वे जिम्मेदारी, साहस और सेवा भाव का उदाहरण हैं।
सैकड़ों ज़िंदगियों को सुरक्षित गंतव्य तक पहुंचाना उनका रोज़ का काम है, लेकिन संकट के समय वे जो निर्णय लेते हैं, वह उन्हें हीरो बनाता है।

तो अगली बार जब आप ट्रेन में बैठें, तो इंजन की तरफ देखना न भूलें — शायद उस ड्राइवर की आँखों में वो जज़्बा हो, जिसने कभी किसी की जान बचाई हो।

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