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क्या आप जानते हैं ट्रेन की ब्रेक लगाने में कितना समय और दूरी लगती है? जवाब चौंकाने वाला है

Rail break system

जब आप सड़क पर कार या बाइक चला रहे होते हैं, तो अचानक ब्रेक लगाकर उसे कुछ मीटर में रोक सकते हैं। लेकिन ट्रेनें? क्या आप जानते हैं कि 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ती एक ट्रेन को पूरी तरह से रोकने में एक किलोमीटर से भी ज़्यादा दूरी लग सकती है?

यह सुनकर चौंकना स्वाभाविक है, लेकिन यही रेलवे संचालन की एक सच्चाई है। आज हम विस्तार से जानेंगे कि ट्रेन की ब्रेकिंग में कितना समय और दूरी लगती है, यह प्रक्रिया कैसे काम करती है, और इसके पीछे की तकनीक क्या है।

ट्रेन की ब्रेकिंग कैसे काम करती है?

भारतीय रेलवे में मुख्यतः दो प्रकार की ब्रेकिंग प्रणाली इस्तेमाल होती है:

  1. एयर ब्रेक सिस्टम – आधुनिक ट्रेनों में प्रयुक्त
  2. वैक्यूम ब्रेक सिस्टम – पुराने सिस्टम में, अब लगभग समाप्त

जब ड्राइवर ब्रेक लगाता है, तो इंजन से जुड़े ब्रेक पाइप में हवा का दबाव कम होता है, जो पूरे ट्रेन के कोचों में लगे ब्रेक सिलेंडर को सक्रिय करता है। इसके बाद कोच के पहियों पर ब्रेक शू लगते हैं और धीरे-धीरे ट्रेन की गति कम होने लगती है।

ब्रेकिंग पूरी तरह से धीरे-धीरे नियंत्रित प्रक्रिया होती है — इसमें तुरंत रुकना संभव नहीं होता।

ब्रेकिंग डिस्टेंस किस पर निर्भर करती है?

ट्रेन को रोकने के लिए लगने वाली दूरी और समय कई बातों पर निर्भर करता है:

1. ट्रेन की स्पीड
जितनी ज्यादा गति, उतनी ज्यादा ब्रेकिंग दूरी। उदाहरण:

2. ट्रेन का वजन और लंबाई
मालगाड़ी जैसी भारी ट्रेन को रोकना पैसेंजर ट्रेन की तुलना में कहीं अधिक मुश्किल होता है।
40–50 बोगियों वाली ट्रेन में ब्रेकिंग की प्रतिक्रिया में थोड़ी देरी भी होती है क्योंकि हवा का दबाव सभी कोचों तक पहुंचने में समय लेता है।

3. ट्रैक की स्थिति
अगर ट्रैक पर चढ़ाई है, ढलान है या गीला है, तो ब्रेकिंग दूरी में बदलाव होता है।
ढलान पर ब्रेकिंग दूरी बढ़ जाती है और जोखिम भी ज़्यादा होता है।

4. मौसम और घर्षण
बारिश या कोहरे के समय घर्षण (friction) कम हो जाता है जिससे ब्रेकिंग धीमी होती है।
सर्दियों में ब्रेकिंग सिस्टम जमने के कारण धीमी प्रतिक्रिया दे सकता है।

क्या ट्रेन में इमरजेंसी ब्रेक होते हैं?

हाँ। ट्रेन में दो प्रकार के ब्रेक होते हैं:

1. नॉर्मल ब्रेक (Service Brake)
ड्राइवर द्वारा सामान्य संचालन में लगाए जाते हैं। ये धीरे-धीरे ट्रेन को रोकते हैं।

2. इमरजेंसी ब्रेक (Emergency Brake)
बहुत आवश्यक स्थिति में गार्ड, यात्री या ऑटोमैटिक सिस्टम द्वारा लगाए जाते हैं। इनसे तुरंत अधिकतम ब्रेकिंग की जाती है।

लेकिन ध्यान रहे, इमरजेंसी ब्रेक भी ट्रेन को तुरंत नहीं रोक सकते। इससे ट्रेन की ब्रेकिंग दूरी थोड़ी कम हो सकती है, पर यह फिर भी सैकड़ों मीटर में होती है।

ब्रेकिंग टाइम कितना होता है?

ट्रेन की गति और लंबाई के आधार पर ब्रेकिंग में लगने वाला समय भी बदलता है।
उदाहरण के लिए:

क्या ड्राइवर को पहले से पता होता है कहां ब्रेक लगानी है?

जी हाँ। ट्रेनों के ड्राइवरों को पूरी ट्रेनिंग दी जाती है कि उन्हें कितनी दूरी पहले ब्रेक लगाना शुरू करना है ताकि ट्रेन प्लेटफॉर्म या सिग्नल पर ठीक से रुके।
इसीलिए कई बार आपने देखा होगा कि ट्रेन स्टेशन से काफी पहले ही धीमी होने लगती है — यही वजह है।

यह अनुभव, सटीक गणना और ट्रेन की गति के आधार पर तय होता है।

क्या कोई ऑटोमैटिक ब्रेकिंग सिस्टम भी होता है?

हां। भारत में कुछ हाई-स्पीड और आधुनिक ट्रेनों में अब Train Protection and Warning System (TPWS) और Kavach जैसी तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है।

इनसे यह संभव होता है कि:

यह सिस्टम भारतीय रेलवे में धीरे-धीरे लागू किया जा रहा है और भविष्य में अधिक व्यापक होगा।

जनता के लिए क्यों जरूरी है यह जानकारी?

अक्सर लोग सोचते हैं कि अगर कोई ट्रैक पार कर रहा हो और ट्रेन आ रही हो, तो शायद वह रुक सकती है। लेकिन ऐसा नहीं है।
आपको यह जानना ज़रूरी है कि ट्रेन को रोकना एक सेकंड का काम नहीं, बल्कि एक किलोमीटर का सफर है

ट्रैक पार करते समय सावधानी न बरतना, “मैं दौड़कर पार कर लूंगा” सोच लेना — यह जानलेवा हो सकता है।

निष्कर्ष

ट्रेन की ब्रेकिंग एक जटिल, तकनीकी और धीमी प्रक्रिया है। यह कार या बाइक की तरह झट से नहीं रुक सकती।
इसलिए ट्रैक पार करते समय, स्टेशन पर खड़े होते समय या रेलगाड़ी के पास जाते समय हमें इस सच्चाई को ध्यान में रखना चाहिए।

अब जब आप अगली बार ट्रेन से सफर करें या रेलवे ट्रैक के पास हों, तो यह ज़रूर याद रखें —
ट्रेन को रोकने में समय भी लगता है और दूरी भी — और वह समय आपके पास नहीं हो सकता।
सावधानी ही सुरक्षा है।

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