जब भी आप ट्रेन से यात्रा करते हैं, तो शायद ही कभी इस पर ध्यान गया हो कि वह लोहे की दो पटरियों पर कितनी तेज़ी से, कितनी स्थिरता से दौड़ रही है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन रेलवे ट्रैक्स की रोज़ाना जांच और माप की जाती है — वह भी बेहद वैज्ञानिक और तकनीकी तरीकों से?
जी हाँ, भारतीय रेलवे का एक बहुत बड़ा और जरूरी विभाग हर दिन ट्रैक की सेहत की निगरानी करता है ताकि आपकी यात्रा सुरक्षित, आरामदायक और समय पर हो।
आइए, इस लेख में विस्तार से समझते हैं कि रेलवे ट्रैक्स की जांच कैसे होती है, कौन करता है, और इसमें कौन-कौन सी आधुनिक तकनीकें इस्तेमाल की जाती हैं।
रेलवे ट्रैक की हालत क्यों मायने रखती है?
रेलवे ट्रैक किसी भी ट्रेन ऑपरेशन की रीढ़ होते हैं। अगर पटरियों में हल्की सी भी गड़बड़ी हो जाए — जैसे झुकाव (tilt), गैप, दरार या असंतुलन — तो इससे ट्रेन की गति, स्थिरता और यात्रियों की सुरक्षा पर सीधा असर पड़ता है।
हर दिन हजारों ट्रेनें लाखों किलोमीटर ट्रैक पर दौड़ती हैं। इसलिए यह जरूरी है कि ट्रैक हर दिन ठीक से जांचे जाएं।
कौन करता है ट्रैक की जांच?
- ट्रैकमैन (Trackman) – ये वो लोग होते हैं जो रेलवे ट्रैक पर सीधे जाकर पैदल निरीक्षण करते हैं। इन्हें ‘Keyman’ भी कहा जाता है।
- PWI (Permanent Way Inspector) – ये सीनियर अधिकारी होते हैं जो पूरे सेक्शन की देखरेख करते हैं।
- Engineering Wing – रेलवे का इंजीनियरिंग विभाग भी नियमित अंतराल पर निरीक्षण करता है।
- ऑटोमैटिक सिस्टम्स और मशीनें – कई बड़े रूट्स पर मशीनरी भी जांच का काम करती है।
जांच कितनी बार होती है?
रेलवे ट्रैक्स की जांच एक विशेष समय-सारणी के अनुसार होती है:
- रोज़ाना (Daily) जांच – Trackman द्वारा
- हफ्ते में एक बार – Section Engineer द्वारा
- हर 3-6 महीने में – अल्ट्रासोनिक टेस्टिंग या मैकेनिकल इंस्पेक्शन
- जरूरत पड़ने पर – जैसे ज़्यादा ट्रैफिक, भारी बारिश या भूकंप के बाद
रेलवे ट्रैक की जांच कैसे की जाती है?
- Manual Inspection (हाथ और आंखों से निरीक्षण)
ट्रैकमैन छोटे-छोटे हथियारों और टूल्स के साथ ट्रैक पर पैदल चलते हैं और देखते हैं कि:- कहीं फिश प्लेट (जो दो ट्रैकों को जोड़ती है) ढीली तो नहीं
- कोई बोल्ट निकला हुआ तो नहीं
- स्लीपर टूटे हुए तो नहीं
- ट्रैक में किसी तरह की दरार तो नहीं
- Ultrasonic Flaw Detection (UFD) Test
इसमें एक मशीन ट्रैक के अंदर की सतह पर अल्ट्रासोनिक तरंगें भेजती है और यह बताती है कि कहीं अंदर से कोई दरार तो नहीं है जो बाहर से नहीं दिखती। - Track Recording Cars
यह एक खास ट्रेन होती है जिसमें कई हाई-टेक उपकरण लगे होते हैं जो गति, संतुलन, ऊँचाई, क्रॉस लेवल और ट्रैक के कम्पन को रिकॉर्ड करते हैं। - Oscillation Monitoring System
इस तकनीक में ट्रेन की झूलने की गति (oscillation) को मापा जाता है ताकि पता लगाया जा सके कि ट्रैक पर कोई असमानता तो नहीं। - GPS और Geo-tagging
आजकल रेलवे ट्रैक की जाँच के लिए GPS आधारित डिवाइस का भी प्रयोग होने लगा है, जिससे प्रत्येक लोकेशन का ट्रैक रिकॉर्ड किया जा सकता है।
क्या होता है अगर कोई गड़बड़ी मिलती है?
यदि निरीक्षण के दौरान कोई समस्या पाई जाती है, तो उस स्थान पर एक “Speed Restriction” लगा दी जाती है और संबंधित विभाग को तुरंत मरम्मत का आदेश दिया जाता है।
कुछ मामलों में ट्रैक को अस्थायी रूप से बंद कर दिया जाता है और ट्रेनों को दूसरी लाइन पर डायवर्ट कर दिया जाता है।
क्या ट्रैक पर नज़र रखने के लिए AI या ऑटोमेशन का इस्तेमाल होता है?
जी हाँ, 2025 तक भारतीय रेलवे कई रूट्स पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित सिस्टम लागू कर चुका है, जो:
- खुद-ब-खुद अनियमितताओं को पहचानता है
- ट्रैक की तस्वीरें और डाटा क्लाउड पर भेजता है
- भविष्य में होने वाले खतरे की पूर्व चेतावनी देता है
रेलवे ट्रैक की देखभाल में मौसम की भूमिका
मानसून, गर्मी और सर्दी – इन तीनों मौसमों का ट्रैक की मजबूती पर असर पड़ता है:
- बारिश में स्लिपर और बोल्ट ढीले पड़ सकते हैं
- गर्मियों में ट्रैक फैल सकता है (buckling)
- ठंड में ट्रैक सिकुड़ सकता है
इसलिए हर मौसम से पहले विशेष निरीक्षण किया जाता है जिसे “Pre-Monsoon”, “Winter Patrol”, आदि नाम दिया गया है।
रेलवे ट्रैक की सुरक्षा में तकनीकी क्रांति
आज भारतीय रेलवे निम्नलिखित टेक्नोलॉजी अपना रहा है:
- Drone Surveillance – दूरस्थ और खतरनाक इलाकों में ट्रैक निगरानी
- Smart Track Sensors – जो खुद ट्रैक की हलचल और तापमान दर्ज करते हैं
- AI Based Predictive Maintenance Tools – ट्रैक खराब होने से पहले उसका संकेत दे देते हैं
निष्कर्ष
ट्रेन से यात्रा जितनी आसान लगती है, उसके पीछे उतनी ही जटिल और मेहनती व्यवस्था होती है। रेलवे ट्रैक की रोज़ाना जांच इस बात का प्रमाण है कि आपकी यात्रा केवल तेज़ और सस्ती ही नहीं, बल्कि हर पल सुरक्षित भी है।
अब जब आप अगली बार ट्रेन में सफर करें और ट्रैक की रफ्तार को महसूस करें, तो जानिए — उस रफ्तार के पीछे हर दिन की गई एक बारीक और सतर्क जांच छुपी है।
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