भारतीय रेलवे दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क है, लेकिन इसका विस्तार केवल शहरों और गांवों तक ही नहीं, बल्कि जंगलों, अभयारण्यों और वन्यजीव क्षेत्रों तक भी है। इस कारण, कई बार रेलवे और वन्यजीवों के बीच टकराव की स्थिति बन जाती है — और इसका सबसे संवेदनशील उदाहरण है हाथियों की मौतें।
ऐसे ही हादसों को रोकने के लिए भारतीय रेलवे ने एक अनूठी पहल की शुरुआत की, जिसे कहा जाता है: “हाथी अलर्ट सिस्टम”। इस सेवा का उद्देश्य है — ट्रेनों और हाथियों के बीच होने वाली टकराव की घटनाओं को रोकना।
आइए जानते हैं इस सेवा की पूरी कहानी, इसकी शुरुआत कैसे हुई, और आज यह कैसे काम कर रही है।
समस्या की जड़: हाथियों की रेल दुर्घटनाएं
भारत में हर साल कई हाथियों की जान रेलवे ट्रैक पर चल रही ट्रेनों से टकरा कर चली जाती है। विशेष रूप से पूर्वोत्तर भारत, असम, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड जैसे राज्यों में जहां रेलवे लाइनें जंगलों और हाथियों के कॉरिडोर से होकर गुजरती हैं — वहां यह समस्या अधिक गंभीर है।
कुछ प्रमुख आंकड़े:
- साल 2010 से 2023 तक, 300 से ज्यादा हाथियों की मौत ट्रेन से टकराकर हो चुकी है।
- केवल असम और बंगाल में ही दर्जनों हाथी हर साल रेलवे एक्सीडेंट्स में मारे जाते हैं।
- इनमें से कई हादसे रात के समय या कोहरे में हुए, जब हाथी रेलवे लाइन पार कर रहे थे।
ऐसे में सवाल उठता है — क्या किया जाए?
हाथी अलर्ट सिस्टम की शुरुआत
भारतीय रेलवे और वन विभाग ने मिलकर इस समस्या का समाधान निकालने के लिए हाथी अलर्ट सिस्टम (Elephant Alert System) की शुरुआत की। इस सेवा को पहली बार पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर उत्तर पूर्व सीमांत रेलवे (Northeast Frontier Railway – NFR) में शुरू किया गया।
इसका उद्देश्य था:
- हाथियों की उपस्थिति की रियल टाइम जानकारी ड्राइवर तक पहुंचाना
- स्पीड को नियंत्रित करना
- दुर्घटनाओं से पहले ट्रेन को रोक पाना
यह सिस्टम कैसे काम करता है?
हाथी अलर्ट सेवा एक तकनीकी और मानवीय सहयोग से चलती है। इसके मुख्य घटक हैं:
- सेनसर और वायरलेस डिवाइसेज़: रेलवे ट्रैक के किनारे कुछ खास जगहों पर सेंसर लगाए गए हैं जो हाथियों की हलचल को पहचानते हैं।
- GPS ट्रैकिंग कॉलर: कुछ हाथियों पर GPS कॉलर लगाए गए हैं, जिससे उनकी मूवमेंट ट्रैक की जा सके।
- रियल-टाइम मैसेजिंग: जैसे ही कोई हाथी ट्रैक के पास आता है, ड्राइवर को SMS या अलर्ट मिलता है।
- स्पीड रेस्ट्रिक्शन ज़ोन: जहां-जहां हाथियों की आवाजाही ज़्यादा होती है, वहां ट्रेनों की गति घटाकर 30–50 km/h कर दी जाती है।
- कम्युनिटी वॉच वॉलंटियर्स: ग्रामीण और वन रक्षक कर्मचारियों को भी अलर्ट सिस्टम से जोड़ा गया है ताकि वे मौके की जानकारी दे सकें।
टेक्नोलॉजी की भूमिका
आज इस सिस्टम को और मजबूत करने के लिए कई तकनीकें अपनाई जा रही हैं:
- AI-बेस्ड इमेज प्रोसेसिंग: कैमरे हाथियों की पहचान कर सकते हैं और तुरंत अलर्ट भेजते हैं।
- जिओ-फेंसिंग: एक वर्चुअल बाउंड्री बनाकर यह सिस्टम अलर्ट देता है जब हाथी उस सीमा में प्रवेश करता है।
- रडार और इंफ्रारेड सेंसर: खासतौर पर रात में हाथियों की पहचान के लिए।
- व्हाट्सएप अलर्ट सिस्टम: फॉरेस्ट गार्ड्स और रेलवे पायलटों को ग्रुप के ज़रिए तुरंत जानकारी मिलती है।
सरकार और रेलवे का संयुक्त प्रयास
रेल मंत्रालय और पर्यावरण मंत्रालय ने हाथियों की सुरक्षा को लेकर कई संयुक्त घोषणाएं की हैं, जैसे:
- “Project Elephant” के अंतर्गत रेलवे ट्रैक्स की रीडिजाइनिंग
- अंडरपास और ओवरपास बनाना ताकि हाथी ट्रैक पार कर सकें
- साइलेंस ज़ोन बनाना ताकि तेज़ हॉर्न से हाथी घबराकर दौड़ न जाएं
- रेलवे स्टाफ की स्पेशल ट्रेनिंग, जिससे ड्राइवर और गार्ड ऐसे इलाकों में ज्यादा सतर्क रहें
परिणाम: क्या यह सेवा सफल रही है?
जी हाँ, जिन क्षेत्रों में हाथी अलर्ट सिस्टम लागू किया गया है, वहां हाथियों की मौत के मामलों में कमी आई है। जैसे:
- असम में एक साल के भीतर हाथी मौतों में 30% की गिरावट देखी गई
- नॉर्थ बंगाल में ट्रेनों की स्पीड कम होने से कई हादसे टले
- रेलवे कर्मचारियों और ग्रामीणों में जागरूकता बढ़ी
स्थानीय समुदाय की भूमिका
यह भी देखा गया है कि जब स्थानीय लोग इस अभियान में भाग लेते हैं — तो सफलता की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। कई जगह ग्रामीणों को “हाथी मित्र” नाम दिया गया है, जो रेलवे और वन विभाग को समय पर सूचना देते हैं।
क्या यह सिस्टम पूरे भारत में लागू है?
अभी यह सेवा चयनित क्षेत्रों में ही शुरू की गई है — खासतौर पर नॉर्थ ईस्ट, ओडिशा और बंगाल जैसे इलाकों में। लेकिन भविष्य में इसे पैंथर, बाइसन और अन्य वन्यजीवों के लिए भी विस्तारित किया जा सकता है।
निष्कर्ष
भारतीय रेलवे और वन्यजीव विभाग ने मिलकर एक बहुत ही सराहनीय कदम उठाया है। “हाथी अलर्ट” जैसी सेवा केवल तकनीक का नहीं, बल्कि संवेदनशीलता और जिम्मेदारी का उदाहरण है।
यह हमें याद दिलाता है कि विकास और प्रकृति साथ चल सकते हैं — बस ज़रूरत है समझदारी और सही तकनीक की।
अब जब आप अगली बार ट्रेन से यात्रा करें और वह किसी जंगल से गुज़रे — तो यह जरूर याद रखें कि उस ट्रैक के पास कहीं एक हाथी भी अपनी दुनिया में सुरक्षित चल रहा होगा, क्योंकि किसी ने समय रहते अलर्ट भेज दिया।