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क्या आप जानते हैं रेलवे ट्रैक के नीचे पत्थर क्यों डाले जाते हैं?

क्या आप जानते हैं रेलवे ट्रैक के नीचे पत्थर क्यों डाले जाते हैं

रेलवे ट्रैक पर आपने कई बार ध्यान दिया होगा कि पटरियों के नीचे और आस-पास ढेर सारे पत्थर बिछे होते हैं। ये पत्थर न तो कोई सजावटी काम करते हैं और न ही सिर्फ ऐसे ही रखे गए होते हैं। दरअसल, इन पत्थरों का रेलवे सिस्टम में बहुत बड़ा और अहम रोल होता है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि रेलवे ट्रैक के नीचे पत्थर क्यों डाले जाते हैं, ये कैसे काम करते हैं, और अगर ये न हों तो क्या नुकसान हो सकता है।

इन पत्थरों को क्या कहा जाता है?

सबसे पहले जान लें कि इन पत्थरों का एक खास नाम होता है – “Ballast” (बैलेस्ट)
रेलवे इंजीनियरिंग में बैलेस्ट उन क्रश्ड स्टोन्स को कहा जाता है जो रेलवे ट्रैक के नीचे और चारों ओर बिछाए जाते हैं।

बैलेस्ट का मुख्य उद्देश्य

बैलेस्ट (यानि पत्थर) रेलवे ट्रैक का एक जरूरी हिस्सा होता है, और इसके कई उद्देश्य होते हैं:

1. ट्रैक को स्थिरता देना (Stability)

जब ट्रेन तेज़ गति से ट्रैक पर चलती है, तो भारी कंपन और दबाव उत्पन्न होता है। पत्थर इस दबाव को ट्रैक के नीचे समान रूप से फैलाते हैं और पटरियों को हिलने से रोकते हैं। इससे रेल लाइन टेढ़ी-मेढ़ी नहीं होती और ट्रेन सही दिशा में चलती है।

2. झटकों को कम करना (Shock Absorption)

जब ट्रेन की पहिए पटरियों पर चलते हैं, तो भारी कंपन और झटके उत्पन्न होते हैं। बैलेस्ट इन झटकों को सोख लेता है, जिससे पटरियों और स्लीपर (लकड़ी या कंक्रीट की पट्टियां) पर दबाव कम होता है। यह पूरी प्रणाली को लंबे समय तक सुरक्षित और टिकाऊ बनाता है।

3. स्लिपेज रोकना (Preventing Slipping)

अगर पटरी के नीचे कुछ भी न हो, तो लोहे की पटरी और स्लिपर मिट्टी में धंस सकते हैं या फिसल सकते हैं। लेकिन पत्थर एक घर्षण (friction) पैदा करते हैं जिससे स्लिपर अपनी जगह पर मजबूती से टिके रहते हैं।

4. पानी की निकासी (Drainage)

बारिश या सफाई के दौरान अगर पानी ट्रैक पर जमा हो जाए, तो यह पटरियों को नुकसान पहुँचा सकता है। बैलेस्ट में पत्थर एक-दूसरे से थोड़ी दूरी पर होते हैं जिससे पानी आसानी से नीचे निकल जाता है और जलभराव नहीं होता।

5. वनस्पति उगने से रोकना (Weed Control)

अगर ट्रैक के नीचे मिट्टी सीधे हो तो उस पर घास और छोटे पौधे उग सकते हैं जो ट्रैक के स्थायित्व को नुकसान पहुँचा सकते हैं। लेकिन पत्थरों की सतह पर वनस्पति का उगना मुश्किल होता है।

बैलेस्ट के लिए कौन-से पत्थर इस्तेमाल होते हैं?

रेलवे ट्रैक पर उपयोग किए जाने वाले बैलेस्ट आमतौर पर बेसाल्ट (Basalt) या ग्रेनाइट (Granite) जैसे मजबूत पत्थर होते हैं। इन पत्थरों को मशीनों से तोड़ा जाता है ताकि उनके किनारे नुकीले रहें — इससे ये एक-दूसरे में अच्छे से फिट हो जाते हैं और आसानी से खिसकते नहीं।

स्लिपर, पटरी और बैलेस्ट – एक मजबूत टीम

रेलवे ट्रैक की तीन मुख्य परतें होती हैं:

  1. रेल्स (Lohe ki Pattiyan)
  2. स्लीपर (कंक्रीट या लकड़ी के पट्टे)
  3. बैलेस्ट (पत्थर)

ये तीनों एक संगठित टीम की तरह काम करते हैं। पटरी सीधे ट्रेन के पहियों को मार्ग देती है, स्लीपर उन पटरियों को जोड़ कर फैलाते हैं, और बैलेस्ट इस पूरी संरचना को स्थिर और संतुलित बनाए रखता है।

अगर पत्थर न हों तो क्या होगा?

यदि रेलवे ट्रैक के नीचे बैलेस्ट न हो, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं:

हाई-स्पीड ट्रेनों के लिए स्पेशल बैलेस्ट?

वंदे भारत जैसी हाई-स्पीड ट्रेनों के लिए हाई-क्वालिटी बैलेस्ट का इस्तेमाल किया जाता है। कभी-कभी बैलेस्ट-लेस ट्रैक (Slab Track) भी अपनाया जाता है जिसमें कंक्रीट की ठोस परत के ऊपर पटरी रखी जाती है — लेकिन यह केवल चुनिंदा हाई-स्पीड रूट्स पर होता है क्योंकि इसकी लागत बहुत अधिक होती है।

ट्रैक मेंटेनेंस और बैलेस्ट की सफाई

समय-समय पर रेलवे विभाग बैलेस्ट को साफ और री-लेवल करता है ताकि मिट्टी, धूल और छोटे कण हटा दिए जाएं। इसके लिए रेलवे के पास ऑटोमैटिक बैलेस्ट क्लीनिंग मशीनें होती हैं जो बहुत तेज़ी से ये काम करती हैं।

क्या यात्रियों को बैलेस्ट से कोई खतरा होता है?

सामान्य परिस्थितियों में नहीं। लेकिन यात्रियों को रेलवे ट्रैक पर चलने या पटरियों के पास जाने से बचना चाहिए क्योंकि:

कुछ रोचक तथ्य

निष्कर्ष

रेलवे ट्रैक के नीचे बिछे पत्थर शायद साधारण दिखते हैं, लेकिन इनका रोल रेलवे की सुरक्षा, स्थिरता और टिकाऊपन में बहुत अहम है। एक छोटी-सी दिखने वाली चीज़ पूरे रेलवे नेटवर्क को चलाने में मूक योद्धा की तरह काम करती है।

तो अगली बार जब आप ट्रेन से सफर करें, तो पटरियों के नीचे बिछे उन पत्थरों को देखकर ज़रूर सोचें — वो केवल पत्थर नहीं, रेलवे की नींव हैं।

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