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ट्रेन की स्पीड 200 km/h से ऊपर क्यों नहीं जाती भारत में? जानिए असली कारण

Train Speed

जब आप जापान की बुलेट ट्रेन या फ्रांस की TGV के बारे में पढ़ते हैं, तो यह जानकर हैरानी होती है कि वहां की ट्रेनें 300–400 km/h की रफ्तार से दौड़ती हैं। लेकिन भारत जैसे देश में, जहां रेलवे नेटवर्क विशाल और सैकड़ों साल पुराना है, आज भी ज्यादातर ट्रेनें 120 से 130 km/h की औसत गति से चलती हैं।

कुछ गिनी-चुनी ट्रेनें — जैसे वंदे भारत एक्सप्रेस — भले ही 160–180 km/h की स्पीड छूती हैं, लेकिन 200 km/h से ऊपर की रफ्तार आज भी एक सपना ही है।

तो सवाल उठता है:
आख़िर क्यों भारत में ट्रेनें 200 किमी/घंटा की स्पीड पार नहीं कर पातीं?

इस लेख में हम जानेंगे इसके पीछे के तकनीकी, सुरक्षा, संरचनात्मक और प्रशासनिक कारण, और भविष्य में भारत में तेज रफ्तार ट्रेनों की क्या संभावनाएं हैं।

1. रेलवे ट्रैक की संरचना पुरानी और सीमित है

भारत में ज़्यादातर रेलवे ट्रैक ब्रिटिश काल के समय बिछाए गए थे और उन ट्रैकों को कभी भी हाई-स्पीड ट्रेन के लिहाज से डिज़ाइन नहीं किया गया था।

इन पटरियों की संरचना मुख्य रूप से 100–120 km/h की रफ्तार के लिए उपयुक्त है। जब ट्रेनें इससे ऊपर चलती हैं, तो:

2. सिग्नलिंग सिस्टम अब भी पारंपरिक है

हाई-स्पीड ट्रेनों के लिए ऑटोमैटिक और इन-केब सिग्नलिंग सिस्टम की जरूरत होती है, लेकिन भारत में अब भी अधिकांश रूट्स पर:

जब ट्रेन की स्पीड 200 km/h पार करती है, तो सिग्नल को देखने और रिएक्शन का समय बहुत कम होता है। इसलिए मौजूदा सिस्टम इस स्पीड को हैंडल नहीं कर सकता।

3. क्रॉसिंग और अनऑथराइज़्ड एंट्री का खतरा

भारत में हज़ारों ऐसे रेलवे क्रॉसिंग हैं जो अभी भी अनमैनड (बिना गेटमैन) हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग रेलवे ट्रैक को पैदल, साइकिल या वाहन से पार करते हैं, जो हाई-स्पीड ट्रेन के लिए बड़ा खतरा है।

एक ट्रेन जो 200 km/h की रफ्तार से चल रही हो, उसे इमरजेंसी ब्रेक लगाने के बाद भी 1–2 किलोमीटर तक रोकना लगभग नामुमकिन होता है।

4. प्लेटफॉर्म और स्टेशन संरचना अनुकूल नहीं

तेज़ रफ्तार ट्रेनों के लिए प्लेटफॉर्म की ऊंचाई, चौड़ाई और डिजाइन भी आधुनिक होना चाहिए। लेकिन भारत के अधिकांश प्लेटफॉर्म:

इसलिए ऐसे स्टेशनों पर हाई-स्पीड ट्रेनें बिना रुके गुजरने भी जोखिमपूर्ण हो सकता है।

5. मेंटेनेंस और सुरक्षा लागत बेहद ज़्यादा

हाई-स्पीड ट्रेनों के लिए पटरियों, सिग्नलों, इंजन और कोच का मेंटेनेंस अत्यधिक खर्चीला होता है।

इन सबके लिए बहुत बड़ी पूंजी और ट्रेनिंग की जरूरत होती है, जो फिलहाल पूरे देश में लागू करना कठिन है।

6. यात्री व्यवहार और जागरूकता की कमी

भारत में यात्रियों की एक बड़ी संख्या अभी भी रेलवे स्टेशनों पर ट्रैक पार करती है, ट्रेन की खिड़की से बाहर झांकती है या सामान रखने के लिए कोच के बीच खड़ी रहती है।

ऐसे में अगर ट्रेनें बुलेट-स्पीड से चलेंगी, तो ये सभी व्यवहार दुर्घटना को आमंत्रण देंगे।

जब तक यात्री सुरक्षा के प्रति ज्यादा जागरूक नहीं होंगे, तब तक हाई-स्पीड रेल पूरी तरह कारगर नहीं हो सकती।

7. अलग हाई-स्पीड नेटवर्क की ज़रूरत

जैसे जापान में शिंकान्सेन या फ्रांस में TGV के लिए अलग ट्रैक बनाए गए हैं, वैसे ही भारत को भी हाई-स्पीड ट्रेनों के लिए समर्पित कॉरिडोर चाहिए।

फिलहाल, भारत में सिर्फ मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट पर काम हो रहा है, जो 320 km/h की स्पीड से चलने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

8. नीति और निवेश की प्राथमिकताएँ

भारतीय रेलवे का प्राथमिक उद्देश्य अभी भी है:

ऐसे में हाई-स्पीड ट्रेन पर बहुत बड़ा निवेश करना सरकार के लिए नीतिगत चुनौती बन जाता है।

भविष्य की संभावनाएं

फिर भी भारत धीरे-धीरे तेज़ रफ्तार की ओर बढ़ रहा है:

निष्कर्ष

भारत में ट्रेनों की स्पीड 200 km/h से ऊपर ना जाने के पीछे सिर्फ एक कारण नहीं, बल्कि एक पूरी संरचना, सिस्टम और समाजिक व्यवहार की श्रृंखला जिम्मेदार है।

जहां एक ओर रेलवे सुरक्षा और पहुंच को प्राथमिकता देता है, वहीं दूसरी ओर तेज़ रफ्तार के लिए ज़रूरी निवेश, तकनीक और जन-जागरूकता का इंतज़ार है।

लेकिन जिस तरह से भारत का रेलवे आधुनिक हो रहा है, यह कहना गलत नहीं होगा कि अगले दशक में 200 km/h से ऊपर की ट्रेनें भी हमारे देश की पटरियों पर दौड़ेंगी — और वो भी पूरी सुरक्षा और भरोसे के साथ।

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