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कैसे तय होती है ट्रेन की स्पीड? जानिए भारतीय रेलवे की ‘स्पीड साइंस’

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जब भी हम ट्रेन से सफर करते हैं, तो अकसर सोचते हैं — ये ट्रेन इतनी तेज़ क्यों चल रही है, या इतनी धीमी क्यों? क्या यह हर ट्रेन अपने हिसाब से चलती है? क्या ड्राइवर अपनी मर्जी से स्पीड कम-ज्यादा करता है? असल में ऐसा नहीं है।

भारतीय रेलवे में हर ट्रेन की स्पीड एक तयशुदा मानकों, तकनीकी मापदंडों और सुरक्षा नियमों के आधार पर निर्धारित की जाती है।
इस लेख में हम जानेंगे कि ट्रेन की स्पीड कैसे तय होती है, कौन से कारक इसकी गति को प्रभावित करते हैं और यह पूरा सिस्टम कितना वैज्ञानिक और संगठित है।

ट्रेन की स्पीड कितनी होती है?

भारत में ट्रेनें मुख्यतः चार कैटेगरी में आती हैं, जिनकी स्पीड रेंज कुछ इस प्रकार है:

ट्रेन की स्पीड कौन तय करता है?

ट्रेन की स्पीड तय करने का काम रेलवे का सिविल इंजीनियरिंग विभाग, सिग्नल और ट्रैक डिजाइन टीम, और लोकोमोटिव एक्सपर्ट्स मिलकर करते हैं।
स्पीड तय करने से पहले एक रूट पर कई तरह के सर्वे और परीक्षण किए जाते हैं।

इनमें शामिल होते हैं:

रूट पर आधारित स्पीड कैप

भारत में हर रेलवे रूट के लिए एक अधिकतम स्पीड तय की गई होती है जिसे “Sectional Speed Limit” कहा जाता है। उदाहरण के लिए:

लोको पायलट को उस रूट की अधिकतम स्पीड लिमिट से ज्यादा नहीं चलाने की अनुमति होती, चाहे इंजन और ट्रेन की क्षमता कहीं अधिक क्यों न हो।

ट्रेन की डिजाइन स्पीड बनाम ऑपरेशनल स्पीड

हर ट्रेन की दो स्पीड होती हैं:

यह फर्क इस बात पर निर्भर करता है कि ट्रैक, सिग्नलिंग और सुरक्षा उपाय कितने उन्नत हैं।

ट्रेन की स्पीड को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक

1. ट्रैक की स्थिति
अगर ट्रैक पर गड्ढे, जंग, टूट-फूट या पानी भरा हो, तो ट्रेन की गति सीमित कर दी जाती है।
रेलवे ऐसे स्थानों पर ‘स्पीड रेस्ट्रिक्शन’ बोर्ड लगाता है।

2. मौसम
तेज़ बारिश, धुंध, बर्फबारी या तूफान आने की स्थिति में ट्रेन की स्पीड घटा दी जाती है।
विशेषत: मानसून के दौरान वेस्टर्न घाट और नॉर्थ-ईस्ट में स्पीड लिमिट 20–30% तक कम कर दी जाती है।

3. मोड़ और चढ़ाव
जहां ट्रैक में ज्यादा मोड़ होते हैं, वहां ट्रेन को धीमा करना ज़रूरी होता है ताकि वह ट्रैक से न उतरे।
इसी तरह चढ़ाई वाले ट्रैक पर भी स्पीड सीमित रहती है।

4. ब्रिज और सुरंगें
ब्रिज पर ट्रेन को संतुलित गति से गुजरने की आवश्यकता होती है, विशेषकर यदि वह बहुत पुराना या सिंगल लाइन ब्रिज हो।

5. स्टेशन की दूरी
यदि दो स्टेशनों के बीच की दूरी कम है, तो ट्रेन तेज नहीं चल सकती क्योंकि बार-बार रुकना होगा।

6. लेवल क्रॉसिंग और आबादी वाले क्षेत्र
जहां ट्रैक आबादी के नज़दीक हो या लेवल क्रॉसिंग ज्यादा हों, वहां ट्रेन की स्पीड को नियंत्रित रखा जाता है।

स्पीड की निगरानी कैसे होती है?

हर ट्रेन के लोकोमोटिव में स्पीडोमीटर, GPS ट्रैकिंग सिस्टम और ब्लैक बॉक्स लगे होते हैं जो हर समय ट्रेन की स्पीड रिकॉर्ड करते हैं।
यदि कोई लोको पायलट स्पीड लिमिट तोड़ता है, तो रेलवे को इसकी रिपोर्ट मिल जाती है और उस पर अनुशासनात्मक कार्रवाई भी हो सकती है।

रेलवे कंट्रोल रूम में रीयल-टाइम मॉनिटरिंग की जाती है, खासकर तेज रफ्तार और प्रीमियम ट्रेनों के लिए।

भविष्य में रेलवे स्पीड को कैसे बढ़ा रहा है?

1. नई ट्रेनों की डिजाइन
वंदे भारत, तेजस और भविष्य की बुलेट ट्रेनें इस दिशा में मील का पत्थर हैं। इन ट्रेनों की डिज़ाइन स्पीड 160–350 किमी/घंटा तक होती है।

2. ट्रैक अपग्रेडेशन
रेलवे अब पुराने ट्रैक को वेल्डेड रेल, हाई-स्ट्रेंथ स्टील और कॉन्क्रीट स्लीपर से बदल रहा है।

3. सेमी-हाई स्पीड कॉरिडोर
दिल्ली–लखनऊ, दिल्ली–वाराणसी, मुंबई–अहमदाबाद जैसे रूट्स पर तेज रफ्तार की ट्रेनें चलाई जा रही हैं।

4. सिग्नलिंग सिस्टम में सुधार
अब रेलवे ऑटोमैटिक सिग्नलिंग, ट्रेन प्रोटेक्शन वार्निंग सिस्टम (TPWS) और कवच जैसी आधुनिक तकनीक अपना रहा है, जिससे स्पीड बढ़ाना सुरक्षित होता है।

कुछ रोचक तथ्य

निष्कर्ष

ट्रेन की स्पीड कोई अनुमान या ड्राइवर की मर्जी से तय नहीं होती, बल्कि यह एक वैज्ञानिक, तकनीकी और प्रशासनिक प्रक्रिया का परिणाम होती है।
हर स्टेशन, हर मोड़ और हर किलोमीटर की रफ्तार पहले से तय होती है और उस पर निगरानी भी रखी जाती है।

तो अगली बार जब आप ट्रेन में हों और आपको लगे कि ट्रेन तेज या धीमी चल रही है, तो जान लीजिए — उसकी हर रफ्तार के पीछे है एक सटीक गणना और सुरक्षा की सोच।

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