भारतीय रेलवे हर साल हजारों ट्रेन कोचों का निर्माण करता है, लेकिन उतने ही कोच पुराने होकर सेवा से बाहर भी हो जाते हैं। सवाल ये उठता है — जब कोई डिब्बा चलने लायक नहीं रहता, तो उसका क्या होता है? क्या उसे ऐसे ही फेंक दिया जाता है?
असल में, हर पुराने ट्रेन कोच की एक नई जिंदगी होती है, जो या तो किसी दूसरी भूमिका में आती है या पूरी तरह से पुनर्निर्माण (Recycling) होकर कुछ नया बन जाती है।
इस लेख में हम जानेंगे कि पुराने ट्रेन डिब्बों का क्या होता है, उन्हें कैसे कबाड़ में बदला जाता है, और उनसे नई चीजें कैसे बनती हैं।
1. ट्रेन कोच कब ‘पुराना’ माना जाता है?
हर कोच की एक निर्धारित सेवा-आयु होती है। रेलवे के नियमों के अनुसार:
- ICF कोच: 25 से 30 साल
- LHB कोच: 35 साल तक
- फ्रेट वैगन (मालगाड़ी): 30 साल तक
- स्पेशल कोच (जैसे सैलून, पैंट्री कार): रखरखाव पर निर्भर
अगर कोच:
- बहुत पुराना हो जाए
- चलने की हालत में न हो
- रिपेयर खर्च उसके मूल्य से ज्यादा हो
- या तकनीकी रूप से आउटडेटेड हो जाए
तो उसे “Condemned” यानी सेवा से बाहर घोषित कर दिया जाता है।
2. कोच को सेवा से हटाने की प्रक्रिया
जब कोई कोच ‘Condemned’ घोषित होता है, तो इसे रेलवे द्वारा निम्नलिखित प्रक्रिया से हटाया जाता है:
- रेलवे के इंजीनियर उसका पूरा निरीक्षण करते हैं
- एक बोर्ड या समिति द्वारा उसकी कीमत और स्थिति का आकलन किया जाता है
- उसे आधिकारिक तौर पर स्क्रैप लिस्ट में डाला जाता है
- फिर उसे डिपो से हटाकर स्क्रैप यार्ड या वर्कशॉप भेजा जाता है
3. क्या पूरा कोच स्क्रैप में चला जाता है?
नहीं, रेलवे कोच को पूरी तरह स्क्रैप में नहीं फेंका जाता। इसमें से कई चीजें निकालकर दोबारा इस्तेमाल की जाती हैं। इसे कहा जाता है — साल्वेजिंग (Salvaging)।
कोच से निकलने वाली उपयोगी चीजें:
- व्हील और एक्सल – अच्छी हालत में होने पर दोबारा उपयोग
- डोर्स और विंडोज़ – लोकल ट्रेनों या स्टेशनों में इस्तेमाल
- सीटिंग फ्रेम – वेटिंग रूम, कैंटीन, स्टाफ रेस्ट रूम में
- पंखे और लाइट्स – दूसरी ट्रेनों या वर्कशॉप में
- ब्रेक सिस्टम और फिटिंग्स – ट्रेनिंग यार्ड में प्रशिक्षण हेतु
4. पुराने कोच का स्क्रैप कैसे निकाला जाता है?
रेलवे स्क्रैपिंग की प्रक्रिया एक संगठित प्रणाली के तहत करता है:
a) कटिंग यार्ड में ले जाना
कोच को क्रेन और इंजन की मदद से स्क्रैप यार्ड लाया जाता है।
b) मैनुअल और मशीन कटिंग
पटरियों पर रखकर गैस कटिंग मशीन से कोच को टुकड़ों में काटा जाता है।
c) मटेरियल सेग्रिगेशन
कटे हुए हिस्सों को अलग-अलग श्रेणियों में बांटा जाता है जैसे:
- माइल्ड स्टील
- स्टेनलेस स्टील
- कॉपर वायर
- एलुमिनियम पार्ट्स
- रबर, फोम, प्लास्टिक
d) बिक्री प्रक्रिया
रेलवे ई-नीलामी या टेंडर प्रक्रिया से स्क्रैप बेचता है। कई प्राइवेट स्क्रैप डीलर्स इन्हें खरीदते हैं और आगे की प्रोसेसिंग करते हैं।
5. कबाड़ से क्या-क्या नई चीजें बनती हैं?
यह सबसे दिलचस्प हिस्सा है। पुराने कोच के मटेरियल से कई उपयोगी चीजें बनती हैं:
a) स्टील से:
- रेलिंग, स्टोरेज कंटेनर, निर्माण सामग्री
- लोहे की कुर्सियां, टेबल, गेट्स
- औद्योगिक स्पेयर पार्ट्स
b) फर्नीचर से:
- रेलवे वेटिंग रूम या कार्यालयों में बेंच, टेबल
- स्कूल और हॉस्टल में पुनर्नवीनीकरण फर्नीचर
c) डोर्स और विंडोज:
- रेलवे क्वार्टर्स, कैंटीन, ऑफिसेज में दोबारा इस्तेमाल
d) इलेक्ट्रिक आइटम्स:
- फैन, लाइट्स को ठीक कर अन्य जगह लगाना
- ट्रेनिंग स्कूल या वर्कशॉप में डेमो के लिए
e) डिजाइन व उपयोगी वस्तुएं:
- कुछ कलाकार और आर्ट स्टूडियो इन स्क्रैप से
- शिल्प कला
- लैंप शेड्स
- सजावटी वस्तुएं बनाते हैं
6. क्या कुछ कोचों को म्यूज़ियम या होटल बना दिया जाता है?
हाँ! कई पुराने कोचों को रेलवे म्यूज़ियम, हेरिटेज होटल, या रेस्तरां में बदल दिया गया है:
- नई दिल्ली, भोपल, मैसूर जैसे शहरों में ट्रेन-थीम वाले रेस्तरां
- रेल संग्रहालयों में पुराने कोच और इंजन को संरक्षित किया गया है
- कुछ कोचों को रेलवे सैलून या इन-स्पेक्शन कार में भी बदला जाता है
7. क्या इससे पर्यावरण को लाभ होता है?
बिलकुल। पुराने कोचों का पुनः उपयोग और स्क्रैपिंग:
- प्राकृतिक संसाधनों की बचत करता है
- कचरे की मात्रा कम करता है
- नए निर्माण की लागत घटाता है
- ऊर्जा की बचत करता है (रिसायक्लिंग में कम ऊर्जा लगती है)
रेलवे अपने स्क्रैपिंग प्रोसेस को ग्रीन इनिशिएटिव्स के साथ जोड़ रहा है, जिससे जीरो वेस्ट नीति की दिशा में कदम बढ़ाया जा रहा है।
निष्कर्ष
पुराने ट्रेन कोच केवल रद्दी नहीं होते, बल्कि उनमें नई संभावनाओं का खजाना छिपा होता है। रेलवे इन्हें कबाड़ में बदलने से पहले हर उपयोगी हिस्सा निकालता है, और फिर स्क्रैप मटेरियल से कई नई चीजें बनती हैं।
अब जब भी आप किसी पुराने ट्रेन डिब्बे को खड़ा या कटता हुआ देखें, तो समझ जाएं — वह अपनी यात्रा खत्म नहीं कर रहा, बल्कि नई यात्रा की शुरुआत कर रहा है।