अगर आपने कभी किसी बड़े रेलवे स्टेशन पर ट्रेन पकड़ी हो, तो शायद आपने नोटिस किया होगा कि प्लेटफॉर्म नंबर केवल 1, 2, 3 ही नहीं होते — बल्कि कई बार बोर्ड पर लिखा होता है PF 1A, PF 2B, या PF 3C।
ये देखकर ज़्यादातर लोगों के मन में सवाल उठता है:
“ये A, B, C क्या है? ये प्लेटफॉर्म का हिस्सा हैं या कोई अलग जगह?”
इस लेख में हम इसी सवाल का जवाब देंगे — कि प्लेटफॉर्म नंबर में A, B, C जैसे अल्फाबेट क्यों जोड़े जाते हैं, इनका उपयोग कैसे होता है, और इससे यात्रियों को क्या फायदा होता है।
1. प्लेटफॉर्म नंबर में अल्फाबेट क्यों जोड़े जाते हैं?
जब किसी रेलवे स्टेशन पर ट्रैफिक बढ़ता है, ट्रेनें ज्यादा आती-जाती हैं, और जगह सीमित होती है — तो वहां प्लेटफॉर्म को बढ़ाना या नया प्लेटफॉर्म बनाना एक चुनौती बन जाता है।
ऐसे में रेलवे एक व्यावहारिक उपाय अपनाता है:
एक ही प्लेटफॉर्म को दो या तीन हिस्सों में बांट देना और उन्हें A, B, C जैसे नाम देना।
उदाहरण:
- PF 1A का मतलब है प्लेटफॉर्म नंबर 1 का “A सेक्शन”
- PF 1B का मतलब है प्लेटफॉर्म नंबर 1 का “B सेक्शन”
इस तरह एक ही प्लेटफॉर्म पर दो या कभी-कभी तीन ट्रेनें एक साथ रोकी जा सकती हैं — लेकिन अलग-अलग हिस्सों में।
2. किस तरह से विभाजन किया जाता है?
अल्फाबेट का उपयोग करके प्लेटफॉर्म को इस प्रकार बांटा जाता है:
- 1A = प्लेटफॉर्म का प्रारंभिक सिरा (Station की तरफ़ का हिस्सा)
- 1B = प्लेटफॉर्म का मध्य भाग या दूसरा सिरा
- 1C = अगर प्लेटफॉर्म बहुत लंबा है, तो तीसरा हिस्सा
यह विभाजन ट्रेन की लंबाई, स्टेशन की बनावट, और संचालन की जरूरत के अनुसार तय किया जाता है।
3. यात्रियों के लिए इसका क्या मतलब होता है?
जब ट्रेन किसी छोटे सेक्शन (जैसे PF 2A या PF 3B) पर लगती है, तो यात्रियों को:
- सही एंट्री गेट से आना आसान होता है
- बोगी तक पहुंचने में कम दूरी चलनी पड़ती है
- कन्फ्यूजन कम होता है, खासकर बड़े स्टेशनों पर
रेलवे टिकट या एनाउंसमेंट में अक्सर यह बताया जाता है कि ट्रेन PF 1A पर खड़ी है, जिससे यात्रियों को सही दिशा में जाने में मदद मिलती है।
4. रेलवे के लिए इसका क्या लाभ है?
प्लेटफॉर्म में अल्फाबेट जोड़ने से रेलवे को:
- स्थान का अधिकतम उपयोग करने में मदद मिलती है
- कम समय में ज्यादा ट्रेनें स्टेशन से पास कराई जा सकती हैं
- दो छोटी ट्रेनें एक ही प्लेटफॉर्म पर चलाई जा सकती हैं
- ट्रैफिक मैनेजमेंट आसान हो जाता है
यह एक तरह का “Smart Platform Utilization” है।
5. क्या ये प्लेटफॉर्म फिजिकली जुड़े होते हैं?
हां। PF 1A और PF 1B आमतौर पर एक ही प्लेटफॉर्म स्ट्रक्चर का हिस्सा होते हैं। इनमें कोई दीवार या फिजिकल डिवाइडर नहीं होता, लेकिन रेलवे द्वारा उन्हें सॉफ्ट डिविजन किया जाता है।
- स्टेशन के साइनबोर्ड
- प्लेटफॉर्म के पिलर नंबर
- डिजिटल स्क्रीन और
- ट्रेन की पोजीशन मैपिंग
की मदद से यात्रियों को बताया जाता है कि कौन सा हिस्सा A है और कौन सा B।
6. किन स्टेशनों पर इस सिस्टम का ज्यादा उपयोग होता है?
भारत के कई बड़े और भीड़भाड़ वाले स्टेशनों पर प्लेटफॉर्म नंबर में A, B, C का उपयोग किया जाता है, जैसे:
- हावड़ा जंक्शन (Howrah)
- सियालदह (Sealdah)
- लखनऊ चारबाग
- वाराणसी जंक्शन
- मुंबई CST / Dadar / Bandra
- नई दिल्ली / पुरानी दिल्ली स्टेशन
यह खासकर उन स्टेशनों पर आम है जहां ट्रैफिक बहुत अधिक है लेकिन भौगोलिक विस्तार सीमित है।
7. क्या सभी यात्री इसका मतलब जानते हैं?
नहीं। बहुत से यात्री PF 2B या PF 3A देखकर भ्रमित हो जाते हैं, खासकर वे जो पहली बार यात्रा कर रहे होते हैं। इसलिए रेलवे:
- घोषणाएं करता है
- डिजिटल डिस्प्ले बोर्ड्स का उपयोग करता है
- स्टाफ यात्रियों की मदद के लिए तैनात करता है
फिर भी जागरूकता बढ़ाने की ज़रूरत है ताकि यात्री इस सिस्टम को समझें और उसका सही उपयोग करें।
8. क्या भविष्य में यह सिस्टम और व्यापक होगा?
बिलकुल। जैसे-जैसे रेलवे को स्मार्ट और मॉडर्न बनाया जा रहा है, प्लेटफॉर्म अल्फाबेट सिस्टम का दायरा बढ़ेगा। भविष्य में:
- AI आधारित पोजीशन डिस्प्ले सिस्टम
- मोबाइल ऐप पर लाइव कोच पोजीशन
- डायनामिक प्लेटफॉर्म डिस्प्ले
इन सबके ज़रिए यात्रियों को सटीक जानकारी मिलेगी कि उनकी ट्रेन का कौन सा कोच PF 1A या PF 2C पर रुकेगा।
निष्कर्ष
रेलवे स्टेशन पर PF 1A या PF 2B जैसे अल्फाबेट कोई कोड या रहस्य नहीं हैं — बल्कि यह रेलवे की एक स्मार्ट स्पेस मैनेजमेंट तकनीक है। इससे स्टेशन पर अधिक ट्रेनें संभाली जा सकती हैं, यात्रियों की सुविधा बढ़ती है और संचालन बेहतर होता है।
अब जब भी आप स्टेशन पर जाएं और देखें कि आपकी ट्रेन PF 3B पर है — तो समझ जाइए कि आपको प्लेटफॉर्म नंबर 3 के “बी सेक्शन” पर जाना है। और अगली बार किसी को ये समझाएं भी — क्योंकि जानकारी ही सबसे बड़ी सुविधा है।